दुनिया में पहली बार एक सूअर का लीवर किसी इंसान में लगाया गया है. यह कारनामा चीन के वैज्ञानिकों ने किया है.
उत्तर पश्चिमी चीन के शियान की फोर्थ मिलिट्री मेडिकल यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने एक छोटे सूअर से निकाले गए कलेजे (लीवर) का इस्तेमाल किया है. इस सूअर के जीन में बदलाव किया गया था ताकि इंसानी शरीर के उस लीवर को अस्वीकार करने का जोखिम घटाया जा सके. इससे पहले इंसानों में सूअर का गुर्दा और दिल लगाया जा चुका है.
सफल हुआ ट्रांसप्लांट
ट्रांसप्लांट के बाद लीवर पित्त बनाने में सफल हुआ और इसने एक ब्रेन डेड मगर जीवित इंसान में रक्त संचार को स्थिर बनाए रखा. इसके बाद वैज्ञानिकों ने कलेजे की प्रमुख गतिविधियों को पूरा करने की क्षमता पर 10 दिनों तक नजर रखी. इनमें रक्त संचार, रोग प्रतिरोध और उत्तेजक प्रतिक्रियाएं शामिल हैं.
रिसर्चरों को उम्मीद है कि यह अंग भविष्य में उन मरीजों के इलाज में सफल होगा जिनका लीवर बेकार हो गया है और जो अंगदान के इंतजार में हैं.
विज्ञान के इस प्रयोग से रिसर्चर काफी उत्साहित हैं. नेचर जर्नल में छपी रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखर प्रोफेसर लिन वांग ने कहा है, "मॉडिफाइड सूअर से निकले कलेजे ने मानव शरीर में अच्छे से काम किया. यह बड़ी सफलता है. यह ऑपरेशन सचमुच कामयाब रहा."
यह प्रयोग 10 दिनों के बाद खत्म कर दिया गया क्योंकि मरीज के परिजनों ने इसके लिए अनुरोध किया था. लीवर के छह जीन में बदलाव किया गया था ताकि यह मानव शरीर में ट्रांसप्लांट किया जा सके.
इंसान में सफलतापूर्वक लगा सूअर का दिल
जीवित मनुष्य में ट्रांसप्लांट
इस रिसर्च से यह पता चला है कि मोडिफाइड लीवर मानव शरीर में रहने के साथ ही काम भी कर सकते हैं. हालांकि लंबे समय के इसके नतीजों के बारे में जानकारी के लिए अभी और कई प्रयोग करने होंगे.
वांग ने यह भी कहा है, "हमारे पास यह मौका है कि हम भविष्य में गंभीर रूप से लीवर की खराबी वाले मरीजों की समस्या सुलझा सकें. यह हमारा सपना है कि इस सफलता को हासिल करें." प्रोफेसर वांग के मुताबिक, "सूअर का लीवर इंसान के लीवर के साथ भी रह सकता है और शायद यह अतिरिक्त सहयोग देगा."वांग ने इस रिसर्च को भविष्य में जीवित लोगों पर आजमाने की इच्छा जताई है, हालांकि इस बात पर जोर दिया है कि इसके इर्द गिर्द कई जटिलताएं और "बहुत सारे नियम" हैं.
यहां पलते हैं मरीजों की जान बचाने वाले सूअर
स्पेन के नेशनल ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक राफायल मातेसांज का कहना है, "यह दुनिया में जेनेटिकली मॉडिफाइड सूअर के लीवर का ब्रेन डेड मानव में ट्रांसप्लांट का पहला मामला है. प्रयोग का अंतिम उद्देश्य मानक लीवर ट्रांसप्लांट हासिल करना नहीं बल्कि लीवर खराब होने की स्थिति में 'ब्रिज ऑर्गन' के रूप में काम करना है जब मानव अंगों के ट्रांसप्लांट का इंतजार हो रहा हो."
मातेसाज ने यह भी कहा कि यह प्रक्रिया अपने मकसद में सफल रही है और निकट भविष्य में इस तरह के ट्रांसप्लांट जीवित प्राणियों में किए जाएंगे.
सूअर का लीवर ही क्यों
लीवर खराब हो जाने की स्थिति में लीवर का ट्रांसप्लांट सबसे कारगर इलाज का तरीका माना जाता है. हालांकि रिसर्चरों के मुताबिक लीवर की मांग इतनी ज्यादा है कि दानदाताओं से मिलने वाला लीवर इसे पूरा नहीं कर पा रहा है. सूअरों को उनके आकार और शारीरिक गतिविधियों की वजह से अंगों का वैकल्पिक स्रोत माना जाता है. इस सर्जरी के लिए जो सूअर इस्तेमाल किया गया वह डॉक्टर डेंग-के पान की क्लोनॉर्गन बायोटेक्नोलॉजी कंपनी से आया था.
इस ट्रांसप्लांट से पहले 10 साल तक पशुओं पर इस तरह की प्रक्रिया के लिए रिसर्च किया गया था. 2013 में पहली बार वैज्ञानिकों ने सूअर का लीवर बंदर में लगाया था.
इससे पहले इंसानों में सूअर का दिल और किडनी लगाने के सफल प्रयोग हो चुके हैं. हालांकि इन अंगों का शरीर में एक ही काम होता है लेकिन लीवर कई कामों को अंजाम देता है. वांग के मुताबिक यही वजह है कि इसलिए इसके ट्रांसप्लांट में बहुत ज्यादा बाधाएं और जटिलताएं थीं.